आत्मा को मत भूलो
हमारे संस्कार बचपन से ही ऐसे बन जाते हैं कि हमारा ध्यान भीतर की तरफ़ नहीं जाता, बाहर की तरफ़ जाता है। आत्मा की हमें कोई ख़बर नहीं।
आत्मा के लिए शरीर एक कलेवर मात्र है, जब चाहा ओढा, जब चाहा उतारकर रख दिया। -
शुक्रवार, 19 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.